मानवता का दानवता के सम्मुख झुका न माथा है
दीवाली अंधियारों पर उजियारों की जयगाथा है
चारों ओर उजाला होगा, रातों का बल हारेगा
एक दिया अन्धेरे को अन्तिम पल तक ललकारेगा
सूरज का प्रतिनिधि कब तक तमसा में धीरज धारेगा
दीया अन्धेरों को उनके घर में घुस कर मारेगा
हर अन्धेरा हारेगा, दियना तो एक जलाएं
आओ ये विश्वास लिये हम दीपावली मनाएं
ऐसी दीपावली कि हर तम का पर्वत गल जाये
अन्तर-अन्तर में अपनेपन का दीपक जल जाये
@ डा० राहुल अवस्थी
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