Tuesday, 14 October 2014

वहीं हङ्गामा बरपा है

जहां ऐसे भी लम्हे थे, वहीं हङ्गामा बरपा है...


राजेन्द्र प्रसाद स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मीरगञ्ज (बरेली) के बी०टी०सी सङ्काय में राजभाषा-सप्ताह के समापन पर बतौर मुख्य अतिथि था। गजब का उत्साह और कला-कौशल देखने को मिला स्वतःस्फूर्त ढङ्ग से। लगभग एक घण्टे तक प्रशिक्षुओ ने पूरी गुरु-गम्भीरता से अनवरत उठते ठहाकों, ताबडतोड तालियों, उत्ताल ऊर्जा और अमन्द आनन्द के साथ उद्बोधन-श्रवण किया था। अभिभूत था मैं, किन्तु क्या कारण है कि हाल ही में वहां बी०एड० विभाग के अध्यक्ष प्रख्यात बालकवि और विद्वान डा० नागेश पाण्डेय 'सञ्जय' के साथ भयानक अभद्रता की गयी! बहुत कुछ कयास लगाये जा रहे हैं। लोग न जाने क्या-क्या कह रहे हैं : व्यवस्था-शैथिल्य - कमजोर प्रानुशासन, प्राध्यापन, प्रशासन, प्रबन्धन; स्थानीय समीकरण, क्षेत्रीय दबङ्गई, बिना मेहनत टाप करने की अनैतिक चाहत या राजनीति की नर्सरी के सर पर अराजक राजनीति का हाथ; लेकिन जिनको कहना चाहिए, वे कुछ नहीं कह रहे। कारण कुछ भी हो किन्तु सोचना तो हमें होगा ही कि हमारी उच्च शिक्षा की दशा और दिशा आखिरकार है क्या...

@ डा० राहुल अवस्थी
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