Thursday, 30 October 2014

तिरङ्गा नहीं झुकने देंगे


 
















बिस्मिल-अश्फ़ाक़ की जिद के मुरीद हम होंगे 
कभी आजाद तो कभी हमीद हम होंगे
अपनी पहचान तिरङ्गा नहीं झुकने देंगे

वक़्त बोले तो वतन पर शहीद हम होंगे


 















हिन्दुस्तान कवि सम्मेलन
 २९ अक्तूबर २०१४ । शाहजहांपुर

@ डा० राहुल अवस्थी


 














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Tuesday, 21 October 2014

आओ ये विश्वास लिये


मानवता का दानवता के सम्मुख झुका न माथा है
दीवाली अंधियारों पर उजियारों की जयगाथा है
चारों ओर उजाला होगा, रातों का बल हारेगा
एक दिया अन्धेरे को अन्तिम पल तक ललकारेगा
सूरज का प्रतिनिधि कब तक तमसा में धीरज धारेगा
दीया अन्धेरों को उनके घर में घुस कर मारेगा
हर अन्धेरा हारेगा, दियना तो एक जलाएं
आओ ये विश्वास लिये हम दीपावली मनाएं
ऐसी दीपावली कि हर तम का पर्वत गल जाये
अन्तर-अन्तर में अपनेपन का दीपक जल जाये





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हर नर्क मिटायें



 













संसाधन-साधन-धन की सारी साधना अधूरी है
जीवन में न कभी यदि तन सिन्दूरी मन कस्तूरी है
चरण-चरण आचरणिक शुचिता मानव की मजबूरी हो
अपनी सेहत से पहले धरती का स्वास्थ्य जरूरी हो
फ़र्क़ बढाने वाला हर नाजायज तर्क मिटायें
बेडा गर्क करे अपना, ऐसा हर नर्क मिटायें















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Tuesday, 14 October 2014

हमें तुम गुनगुनाओगे

गीत-प्रणाम...




पद्य की पहली पुस्तक गीतकृति : हमें तुम गुनगुनाओगे
आभार : अखिल भारतीय सर्व भाषा संस्कृति समन्वय समिति और नीहारिकाञ्जलि प्रकाशन
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वहीं हङ्गामा बरपा है

जहां ऐसे भी लम्हे थे, वहीं हङ्गामा बरपा है...


राजेन्द्र प्रसाद स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मीरगञ्ज (बरेली) के बी०टी०सी सङ्काय में राजभाषा-सप्ताह के समापन पर बतौर मुख्य अतिथि था। गजब का उत्साह और कला-कौशल देखने को मिला स्वतःस्फूर्त ढङ्ग से। लगभग एक घण्टे तक प्रशिक्षुओ ने पूरी गुरु-गम्भीरता से अनवरत उठते ठहाकों, ताबडतोड तालियों, उत्ताल ऊर्जा और अमन्द आनन्द के साथ उद्बोधन-श्रवण किया था। अभिभूत था मैं, किन्तु क्या कारण है कि हाल ही में वहां बी०एड० विभाग के अध्यक्ष प्रख्यात बालकवि और विद्वान डा० नागेश पाण्डेय 'सञ्जय' के साथ भयानक अभद्रता की गयी! बहुत कुछ कयास लगाये जा रहे हैं। लोग न जाने क्या-क्या कह रहे हैं : व्यवस्था-शैथिल्य - कमजोर प्रानुशासन, प्राध्यापन, प्रशासन, प्रबन्धन; स्थानीय समीकरण, क्षेत्रीय दबङ्गई, बिना मेहनत टाप करने की अनैतिक चाहत या राजनीति की नर्सरी के सर पर अराजक राजनीति का हाथ; लेकिन जिनको कहना चाहिए, वे कुछ नहीं कह रहे। कारण कुछ भी हो किन्तु सोचना तो हमें होगा ही कि हमारी उच्च शिक्षा की दशा और दिशा आखिरकार है क्या...

@ डा० राहुल अवस्थी
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Friday, 10 October 2014

हमने जवाब दिया


वैरी वार करते हैं नज़रें बचा के किन्तु वीर वार करते नज़र को उठा के ही
इसीलिए ईंटों का जवाब पत्थरों से दिया हमने हमेशा निज कर को उठा के ही
घुसपैठियों ने गुपचुप घुसपैठ की तो ललकारा हमने है स्वर को उठा के ही
कायरों ने सर को झुका के गोलीबारी की थी, हमने जवाब दिया सर को उठा के ही




@ डॉ० राहुल अवस्थी
@ चित्र-सौजन्य : BHANU BHARADWAAJ, आई-नेक्स्ट, बरेली
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वाल्मीकि जो न होते

  
















मानस की कल्पना को तुलसी कहां संजोते 
सीता के त्याग-तप को जीवनकथा से खोते
भगवान राम को भी दुनिया न जानती यूं 

दुनिया में आदि कविवर वाल्मीकि जो न होते 



 















@ डा० राहुल अवस्थी । ९ अक्तूबर २०१४ ई०
@ रामायण महोत्सव : वाल्मीकि सद्भावना मेला, ब्रह्मपुरा, बरेली
@ चित्र-सौजन्य : विकास महर्षि । संयोजन : आकाश पुष्कर । संरक्षण : मनोज थपलियाल


 




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