उनके नजारों का ज़माना है दीवाना जो कि
नज़रों से प्यार का पयाम लिख देते हैं
उनकी कहानी पे विराम लगता नहीं है
जो मरा-मरा को राम-राम लिख देते है
उनकी ज़मीन ही सलामत रही है जो कि
अम्बर पे शौर्य से सलाम लिख देते हैं
उनका प्रभात भी ख़बरदार मिलता है
शाम भी जो वीरों के ही नाम लिख देते हैं
उनकी कहानी पे विराम लगता नहीं है
जो मरा-मरा को राम-राम लिख देते है
उनकी ज़मीन ही सलामत रही है जो कि
अम्बर पे शौर्य से सलाम लिख देते हैं
उनका प्रभात भी ख़बरदार मिलता है
शाम भी जो वीरों के ही नाम लिख देते हैं
@ डॉ०
राहुल अवस्थी
@ drrahulawasthi@twitter.com
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बेहद मौज़ू कविता. क्या कहने, लाजवाब !
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