Sunday, 27 April 2014

सियासत के सदके



भेद के अभाव का फूल फूल पाता है तो  
भेदभाव वाला विषवृक्ष फल जाता है
पञ्जे के शिकञ्जे में फंसे हों टेंटुए तो फिर  
गर्दनें उडाने वाला चक्र चल जाता है
 
कृषकों के हाथ काटने पे हंसिया तुले तो  
सर मजदूरों के हथौडा दल जाता है
लालटेन लम्पटों के हाथों में हो लालों की तो  
कपटों की लपटों में देश जल जाता है
 
 
 

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