Saturday, 26 April 2014

हाथी हौला शेर

हिलता है जब भी समानता का मूल ढांचा 
असमानता का भी तो सांचा हिल जाता है
प्रतिकूलताएं जब कण्टकों-सी सालती हैं
अनुकूलताओं का भी फूल खिल जाता है

इसमें भी शंका होनी चाहिए न किञ्चित भी 
वक़्त की कृपा से वज्रवार झिल जाता है
छाया को निगल रहे काया को कुचल रहे
मायावी हाथी को कभी शेर मिल जाता है

Dr. Rahul Awasthi
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