हिलता है जब भी समानता का मूल ढांचा
असमानता का भी तो सांचा हिल जाता है
प्रतिकूलताएं जब कण्टकों-सी सालती हैं
अनुकूलताओं का भी फूल खिल जाता है
इसमें भी शंका होनी चाहिए न किञ्चित भी
वक़्त की कृपा से वज्रवार झिल जाता है
छाया को निगल रहे काया को कुचल रहे
मायावी हाथी को कभी शेर मिल जाता है
Dr. Rahul Awasthi
https://twitter.com/Drrahulawasthi
http://drrahulawasthiauthor.blogspot.in/
https://plus.google.com/u/0/112427694916116692546
https://www.facebook.com/pages/Dr-Rahul-Awasthi/401578353273208
असमानता का भी तो सांचा हिल जाता है
प्रतिकूलताएं जब कण्टकों-सी सालती हैं
अनुकूलताओं का भी फूल खिल जाता है
इसमें भी शंका होनी चाहिए न किञ्चित भी
वक़्त की कृपा से वज्रवार झिल जाता है
छाया को निगल रहे काया को कुचल रहे
मायावी हाथी को कभी शेर मिल जाता है
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