Sunday, 27 April 2014

सियासत के सदके



भेद के अभाव का फूल फूल पाता है तो  
भेदभाव वाला विषवृक्ष फल जाता है
पञ्जे के शिकञ्जे में फंसे हों टेंटुए तो फिर  
गर्दनें उडाने वाला चक्र चल जाता है
 
कृषकों के हाथ काटने पे हंसिया तुले तो  
सर मजदूरों के हथौडा दल जाता है
लालटेन लम्पटों के हाथों में हो लालों की तो  
कपटों की लपटों में देश जल जाता है
 
 
 

Saturday, 26 April 2014

जिन्दाबाद जुगाड


गांठ लेते हैं नेताजी आते ही चुनाव यारी
जीतने के लिये अधिकारी गांठ लेते हैं
भ्रष्टाचार-मुक्त सरकारी तन्त्र देने हेतु
चोर-डाकू-माफ़िया-जुआरी गांठ लेते हैं

गांठ लेते हैं अनेक बधिक-शिकारी-धूर्त
व्याभिचारी और अनाचारी गांठ लेते हैं
हाथी छोड साइकिल चढते हैं कुछ
साइकिल छोड हाथी की सवारी गांठ लेते हैं

Dr. Rahul Awasthi
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हाथी हौला शेर

हिलता है जब भी समानता का मूल ढांचा 
असमानता का भी तो सांचा हिल जाता है
प्रतिकूलताएं जब कण्टकों-सी सालती हैं
अनुकूलताओं का भी फूल खिल जाता है

इसमें भी शंका होनी चाहिए न किञ्चित भी 
वक़्त की कृपा से वज्रवार झिल जाता है
छाया को निगल रहे काया को कुचल रहे
मायावी हाथी को कभी शेर मिल जाता है

Dr. Rahul Awasthi
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Friday, 25 April 2014

नाच न आवे

 
सचमुच 
बड़ी कठिनाई है 
कैसी साइत आयी है 
किसे सुनाएँ  कहाँ जाएँ  
 
एक ही सी.डी. चल रही है
एक ही धुन धुनधुना रही है
एक ही राग बजाया-गाया जा रहा है
मोदी मोदी मोदी मोदी : नमो नमो नमो नमो
 
मायावती आती हैं
आते ही फ़रमाती हैं
मोदी आयेंगे तो भूचाल लायेंगे
करायेंगे दङ्गे-दर-दङ्गे : हर-हर गङ्गे
 
सोनिया दीखती हैं
पूरी ताक़त से चीखती हैं
हमारा क़ुनबा ही पीएम लाइक है
अरे ये नरेन्द्र मोदी तो साम्प्रदायिक है
 
शाहजादे गुर्राते हैं
मोदी थोथे नारे लगाते हैं
गुजरातमाडल का गुब्बारा फूटेगा
राहुल भाई, आपका भी भ्रम टूटेगा
 
मौनी बाबा मिमियाते हैं
बडे अर्थभरे स्वर में बताते हैं
मैडम की बात सोलह आने सही है
बाश्शाओ, नरेन्द्र मोदी की कोई लहर नहीं है
 
लीडर--आजम आपा खोते हैं
मुसलमानों की हालत पर रोते हैं
मोदी का बोझ उनकी भी आत्मा ढोती है
जिनके लिये शहादत भी हिन्दू-मुसलमान होती है
 
सियासी बीज बोते हैं
मुलायम भी कठोर होते हैं
अल्पसङ्ख्यकों को निराधार लुभायेंगे
मुसलमानों को हर सम्भव आरक्षण दिलवायेंगे
उत्तर प्रदेश को कैसे भी गुजरात नहीं बनवा पायेंगे
नरेन्द्र मोदी को रोकने के लिये पूरी ताक़त लगायेंगे
 
लालू हो या दिग्गी
केजरी हो या येचुरी
जदयू हो या राक्रांपा
जयललिता हो या ममता
कोई भी हो, सबका यही हाल है
अपनी-अपनी इज्जत का सवाल है
 
यदि मोदी ने व्यर्थ का श्रेय लिया
तो आप ही बताएं, आपने क्या किया
मोदी की बढवार पर यूं बेकार मर रहे हैं
अरे, आप तो खुद मोदी का प्रचार कर रहे हैं
 
जब मोदीलहर कोई मुद्दा ही नहीं है
कुछ गलत नहीं है, सब सही ही सही है
इसके बाद भी तनाव-दुराव की गर्द जमी है
लगता है आपका दिल कहीं और दिमाग कहीं है
 
मोदी के कारण गुजरात ने कडवा घूंट पिया
तो मुजफ़्फ़रनगर किसके काल में घुट-घुट कर जिया
सिक्खविरोधी दङ्गों का दारुण दंश देश को किसने दिया
आजादी से अब तक भारतमाता का दामन तार-तार किसने किया
 
आपको मानती है
लेकिन करती वही है, जो ठानती है
अन्दर क्या है, बाहर क्या है : ये सबकुछ पहचानती है
देखो दुर्वच नेताओ, इतना मत समझाओ : ये पब्लिक है, ये सब जानती है


Thursday, 24 April 2014

जनता भेंडिया है

ऎसा भी क्या...
भेंडिया बनाम शेर...
जनता बनाम जनप्रतिनिधि...
उपमा तो कमाल की निकाली है...
भेंड़ कहते तो मान भी लेते साहबजी ...
कहा है शेर लीडर को तो इसमें फ़ायदा क्या है...
कहा, है भेंडिया जनता, तो इसमें क़ायदा क्या है...

Dr. Rahul Awasthi
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इशारों को अगर समझो

लगभग हर पार्टी हाथ-मुँह धो कर


सिर्फ़ दो मुद्दों पर चुनाव जीतना चाहती है
एक तो तथाकथित अल्पसंख्यक  को मोदी से डराकर
मोदी का हावहौवा खड़ा कर अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करके
दूसरे येन-केन-प्रकारेण लुभा कर अपना सियासी उल्लू सीधा करके
अपने गिरेबाँ में झाँकने की फुरसत और चाहत किसी की भी नहीं साहब
क्या इसके अलावा और कोई सार्थक पहलू ही नहीं बचा चुनावी चर्चा करने को
पढ़नेलायक एक  विश्लेषणलेख आया है भाई शक़ील हसन शम्शी का दैनिक जागरण में
ज़रूर पढियेगा और तस्दीक करियेगा हमारे परिवेश के आपेक्षिक परिवर्तनों के मौन स्वर की
Dr. Rahul Awasthi 
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