Tuesday, 17 March 2015
ARTHAAT: चाण्डक सम्मान
ARTHAAT: चाण्डक सम्मान: प्रथम चाण्डक सम्मान - २०१५ । डा० राहुल अवस्थी स्वर्गीय सच्चिदानन्द स्वरूप चाण्डक मेमोरिअल ट्रस्ट, बरेली १५ मार्च २०१५ । आई० वी० आर० आई...
ARTHAAT: चाण्डक सम्मान
ARTHAAT: चाण्डक सम्मान: प्रथम चाण्डक सम्मान - २०१५ । डा० राहुल अवस्थी स्वर्गीय सच्चिदानन्द स्वरूप चाण्डक मेमोरिअल ट्रस्ट, बरेली १५ मार्च २०१५ । आई० वी० आर० आई...
चाण्डक सम्मान
प्रथम चाण्डक सम्मान - २०१५ । डा० राहुल अवस्थीस्वर्गीय सच्चिदानन्द स्वरूप चाण्डक मेमोरिअल ट्रस्ट, बरेली
१५ मार्च २०१५ । आई० वी० आर० आई० बरेली
संयोजिका : श्रीमती सुमन चाण्डक
#DR_RAHUL_AWASTHI
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Friday, 13 March 2015
Tuesday, 17 February 2015
जूठे नहीं होते
कथन जिनके यथासम्भव कभी झूठे नहीं होते
समय की अस्मिता से जो कभी रूठे नहीं होते
अमृत का दान करने के लिये विषपान कर लेते
अधर उनके किसी भी शर्त पर जूठे नहीं होते
Sunday, 8 February 2015
किसी की याद का दियना
क़सम ईमानदारी की कहीं कुछ तो छला-सा है
बडा बेचैन-सा है बावला जो सांवला-सा है
बचाकर आंसुओ को आंख का मलना बताता है
किसी की याद का दियना किसी दिल में जला-सा है
#DR_RAHUL_RAHUL
#IIM_KASHIPUR । ०६ फ़रवरी २०१५
बहुत कुछ सीख लेना था
#IIM_KASHIPUR
कभी मीठा कभी खट्टा कभी कडवा कभी तीखा
उसे जो कुछ ज़माने को दिखाना था, वही दीखा
अजब सम्बन्ध थे लेकिन प्रबन्धन क्या ग़ज़ब का था
बहुत कुछ सीख लेना था मगर कुछ भी नहीं सीखा
कभी मीठा कभी खट्टा कभी कडवा कभी तीखा
उसे जो कुछ ज़माने को दिखाना था, वही दीखा
अजब सम्बन्ध थे लेकिन प्रबन्धन क्या ग़ज़ब का था
बहुत कुछ सीख लेना था मगर कुछ भी नहीं सीखा
ज़रूरी तो नहीं
किसी बे-जान को भी जानकर पहचान मिलना है
ज़रूरी तो नहीं अहसान पर अहसान मिलना है
हमारा मन हमेशा मान का अरमान क्या पाले
कहीं अपमान खोना है, कहीं सम्मान मिलना है
Friday, 23 January 2015
आओ श्रीमन्त वसन्त!
प्रणवाद्य
प्रवण ऊर्जा ज्यों त्याज्य दिखाई दे
हर
ओर कुहासे का साम्राज्य दिखाई दे
पावक
दाहक तन में कुछ चेतनता भरता
जल
को छूते दिल में जलजला उठा करता
सूरज
शायद ही कभी मिला मुखडा खोले
पल-पल
सिहराती सांकल खड-खड-खड बोले
जीवन-दर्शन
लगता मानो हो ठगा हुआ
मौक़ा-माहौल
किसी साजिश में पगा हुआ
मायावी
खलनायक का जादू जगा हुआ
हर
ओर दिखाई देता कर्फ़्यू लगा हुआ
कल्पनालोक
का ज्यों आभास उभर आया
अपनी
धरती पर ही आकाश उतर आया
मुखराजि
झलक्कित अवगुण्ठन से ढकी हुई
हिय-प्रिय
पर्जन्य-परस उत्सव-श्रम थकी हुई
अनगिन
दिन अपने में ही खोई रही धरा
कुहरे
की शाल लपेटे सोई रही धरा
लेकिन
कब तक चलता है एक-दिशा जीवन
प्रकृति
का शाश्वत सत्य सनातन परिवर्तन
उत्साह
कहीं है, छायी कहीं उदासी है
यद्यपि
हर घटना की दुनिया अभ्यासी है
फिर
भी यह केवल इस कारण अविनाशी है
संसृति
नूतनता की सदैव अभिलाषी है
इसलिये
नियम से इस, जो था क़ायम, बदला
रातें
बदलीं, दिन बदले, क्रम-मौसम बदला
तमतोममयी
तमसा की गागर रीत चली
गुनगुना
विहान हुआ, घन-यामिनि बीत चली
सूरज
ने धूप हथेली-सी फैलाई है
श्लथ
धरा-वधू ने ली हल्की अंगडाई है
सुनहली
किरण-अंगुलियां कपोलों पर रख दीं
चेतन
धरती की वांछाएं जाग्रत कर दीं
जगती-तल
पर उत्साह नया-सा छाया है
ऐसा
लगता फिर से वसन्त मुकुलाया है
गरमी-बरसात-शरद
का चक्र अनन्त चले
पीछे
से शिशिर चले, हेमन्त-वसन्त चले
आशाएं
हिल जाती हैं या खिल जाती हैं
एक
दिवस में छ्ह ऋतुएं मिल जाती हैं
लेकिन
इन ऋतुओ में जो सबसे न्यारी है
जिसकी
हर शैली और सभी से प्यारी है
जिसके
अनुभव पर सब बलिहारी जाते हैं
उसको
वासन्ती ऋतु कह सभी बुलाते हैं
सम्वत्-पर्यन्त
प्रतीक्षारत रहते हैं हम
प्रियवर
वसन्त! ऋतुराज तुम्हें कहते हैं हम
तुम
व्यग्र मगर धीरज-धारक भी कम न कहीं
तुम
हो सुकुमार मगर मारक भी कम न कहीं
तुम
श्रृङ्गारिकता को छवि सधवा देते हो
तुम
नया बसन्ती चोला रंगवा देते हो
तुम
संसृति में उत्साह नया भर देते हो
तुम
अन्दर-बाहर इङ्क़लाब कर देते हो
तुम
जब भी पतझड से लड-लड कर आते हो
जगतीतल
पर कितने ही फूल खिलाते हो
किञ्चित
होना न निराश कदापि बताते हो
दुख
से लडकर के ही सुख मिले, सिखाते हो
अभिनव
उन्नतियों के नवगीत सुनाती हैं
कलिकाएं
नव-नव राग प्रणय का गाती हैं
राहों
में फूल बिछे, मस्तक रोली-चन्दन
हम
सब करते अभ्यर्थन-आराधन-वन्दन
सारी
ऋतुओ के कन्त! तुम्हारा अभिनन्दन
आओ
श्रीमन्त वसन्त! तुम्हारा अभिनन्दन
नेता हो तो
वीर-धीर तीर-मीर पीर या फ़क़ीर हो तो रङ्ग-जङ्ग के प्रसङ्ग ढङ्ग से विजेता हो
लेता कुछ हो न देता हो प्रदेय बिना स्वार्थ व्यग्र अग्र उग्र राष्ट्रवाद का प्रणेता हो
खून दे के देश की स्वतन्त्रता का क्रेता हो विक्रेता नहीं राष्ट्र का प्रचेता युगचेता हो
भक्ति अनुरक्ति हो तो नेताजी सुभाष जैसी, नेता हो तो नेताजी सुभाष जैसा नेता हो
@ डा० राहुल अवस्थी
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