Thursday, 11 September 2014

हमको कुछ कहना है

हमने सङ्घर्ष सहर्ष जिया...







 













 ये जीवन है, सब सहना है : फिर भी हमको कुछ कहना है
विष अमृत-सा पी आये तो : इतना जीवन जी आये तो
कुछ शोक जिया, कुछ हर्ष जिया : हमने सङ्घर्ष सहर्ष जिया
कुछ ऐसा भी अभ्यास जिया : घर में रहकर संन्यास जिया
ऐसे भी सबके खास रहे : हम दूर रहे पर पास रहे
कुछ ऐसे भी मजबूर रहे : हम पास रहे पर दूर रहे
कुछ जिये हक़ीक़त सपनों की : कुछ पीर पराये अपनों की
कुछ से कुछ-कुछ परिवाद रहा : कुछ से संवाद-विवाद रहा
भूखे थे पर हंसकर सोये : जब पेट भरा था, तब रोये
कुछ दान किया, बलिदान किया : खुद्दारी पर अभिमान किया
यूं कहीं झुकाया माथ नहीं : नाहक फैलाया हाथ नहीं
झुकने के कारण तने रहे : जैसे के तैसे बने रहे
अब कुछ भी है, कैसा भी है : अब जो भी है, जैसा भी है
दुनिया का क़िस्सा लगता है : जीवन का हिस्सा लगता है


@ डा० राहुल अवस्थी । १० सितम्बर २०१४ ई०







 













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Wednesday, 3 September 2014

शीश कट जाते किन्तु झुकते नहीं हैं क्यों





















सर ले गये शहीद सैनिकों का वैरी, ऐसा जानने को - डर के ये लुकते नहीं हैं क्यों
चूकता नहीं है क्यों निशाना इनका कदापि  धैर्य, शौर्य, साहस से चुकते नहीं हैं क्यों
चल पडते हैं एक बार को किसीलिये तो मञ्जिल को पाने तक रुकते नहीं हैं क्यों
जानना जरूरी है ये हिन्दुस्तानी सैनिकों के शीश कट जाते किन्तु झुकते नहीं हैं क्यों

@ डा० राहुल अवस्थी
एक शाम : वीरों के नाम @ साइंस सिटी : प्रभात खबर, कोलकाता
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हमने जवाब दिया सर को उठा के ही





















वैरी वार करते हैं नज़रें बचा के किन्तु वीर वार करते नज़र को उठा के ही
इसीलिए ईंटों का जवाब पत्थरों से दिया हमने हमेशा निज कर को उठा के ही
घुसपैठियों ने गुपचुप घुसपैठ की तो ललकारा हमने है स्वर को उठा के ही
कायरों ने सर को झुका के गोलीबारी की थी, हमने जवाब दिया सर को उठा के ही

@ डा० राहुल अवस्थी
   एक शाम : वीरों के नाम @ साइंस सिटी : प्रभात खबर, कोलकाता
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उनका प्रभात भी ख़बरदार






















उनके नजारों का ज़माना है दीवाना जो कि नज़रों से प्यार का पयाम लिख देते हैं
उनकी कहानी पे विराम लगता नहीं है जो मरा- मरा को राम-राम  लिख देते है
उनकी ज़मीन ही सलामत रही है जो कि अम्बर पे शौर्य से सलाम लिख देते हैं
उनका प्रभात भी ख़बरदार मिलता है शाम भी जो वीरों के ही नाम लिख देते हैं


डॉ० राहुल अवस्थी 
 एक शाम : वीरों के नाम @ साइंस सिटी : प्रभात खबर, कोलकाता


भारतीय सेना की कहानियां























लिक्खी गयीं हों न लिक्खी गयीं हों कथाएं किन्तु ऐसी ही निशानियां हैं ऐसी ही बयानियां
वक़्त की पहेलियों पे, जान ले हथेलियों पे लिख दीं धरा के नाम पे ही जिन्दगानियां
कहीं भी कभी भी कैसी कोई भी विपत्ति आयी, काम आयीं देश के हमेशा नौजवानियां
एक नहीं दो नहीं हैं सैकडों-हजारों ऐसी जिन्दाबाद भारतीय सेना की कहानियां

डॉ० राहुल अवस्थी
एक शाम : वीरों के नाम @ साइंस सिटी : प्रभात खबर, कोलकाता
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युद्धवीरों को प्रणाम है




















जिनके कि नाम से सुबह होती सीमा पर, नाम पे ही ढलती सदैव हर शाम है 
जिनके प्रताप का दमक रहा सूर्य आज, तप का चमक रहा चन्द्र आठों याम है
जिनके कि यश का बखान काल करता है, कीर्तिकेतु फहरता ललित ललाम है
युद्ध से जो एक लाख शत्रु बन्दी कर लाये, उन युद्धवीरों-रणधीरों को प्रणाम है

@ डा० राहुल अवस्थी @ एक शाम : वीरों के नाम @ साइंस सिटी : प्रभात खबर, कोलकाता
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Tuesday, 2 September 2014

उनका प्रभात भी ख़बरदार मिलता है






आभार प्रभात-खबर...















उनके नजारों का ज़माना है दीवाना जो कि
नज़रों से प्यार का पयाम लिख देते हैं
उनकी कहानी पे विराम लगता नहीं है
जो मरा-मरा को राम-राम  लिख देते है
उनकी ज़मीन ही सलामत रही है जो कि
अम्बर पे शौर्य से सलाम लिख देते हैं
उनका प्रभात भी ख़बरदार मिलता है
शाम भी जो वीरों के ही नाम लिख देते हैं