हमने सङ्घर्ष सहर्ष जिया...
ये जीवन है, सब सहना है : फिर भी हमको कुछ कहना है
विष अमृत-सा पी आये तो : इतना जीवन जी आये तो
कुछ शोक जिया, कुछ हर्ष जिया : हमने सङ्घर्ष सहर्ष जिया
कुछ ऐसा भी अभ्यास जिया : घर में रहकर संन्यास जिया
ऐसे भी सबके खास रहे : हम दूर रहे पर पास रहे
कुछ ऐसे भी मजबूर रहे : हम पास रहे पर दूर रहे
कुछ जिये हक़ीक़त सपनों की : कुछ पीर पराये अपनों की
कुछ से कुछ-कुछ परिवाद रहा : कुछ से संवाद-विवाद रहा
भूखे थे पर हंसकर सोये : जब पेट भरा था, तब रोये
कुछ दान किया, बलिदान किया : खुद्दारी पर अभिमान किया
यूं कहीं झुकाया माथ नहीं : नाहक फैलाया हाथ नहीं
झुकने के कारण तने रहे : जैसे के तैसे बने रहे
अब कुछ भी है, कैसा भी है : अब जो भी है, जैसा भी है
दुनिया का क़िस्सा लगता है : जीवन का हिस्सा लगता है
@ डा० राहुल अवस्थी । १० सितम्बर २०१४ ई०
https://twitter.com/Drrahulawasthi
http://drrahulawasthiauthor.blogspot.in/
https://plus.google.com/u/0/112427694916116692546
https://www.facebook.com/pages/Dr-Rahul-Awasthi/401578353273208
ये जीवन है, सब सहना है : फिर भी हमको कुछ कहना है
विष अमृत-सा पी आये तो : इतना जीवन जी आये तो
कुछ शोक जिया, कुछ हर्ष जिया : हमने सङ्घर्ष सहर्ष जिया
कुछ ऐसा भी अभ्यास जिया : घर में रहकर संन्यास जिया
ऐसे भी सबके खास रहे : हम दूर रहे पर पास रहे
कुछ ऐसे भी मजबूर रहे : हम पास रहे पर दूर रहे
कुछ जिये हक़ीक़त सपनों की : कुछ पीर पराये अपनों की
कुछ से कुछ-कुछ परिवाद रहा : कुछ से संवाद-विवाद रहा
भूखे थे पर हंसकर सोये : जब पेट भरा था, तब रोये
कुछ दान किया, बलिदान किया : खुद्दारी पर अभिमान किया
यूं कहीं झुकाया माथ नहीं : नाहक फैलाया हाथ नहीं
झुकने के कारण तने रहे : जैसे के तैसे बने रहे
अब कुछ भी है, कैसा भी है : अब जो भी है, जैसा भी है
दुनिया का क़िस्सा लगता है : जीवन का हिस्सा लगता है
@ डा० राहुल अवस्थी । १० सितम्बर २०१४ ई०
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