Wednesday, 25 July 2018

कारगिल

स्वर उचारे अगर मिल सकेंगे कभी

तो हमारा मिलन भी असम्भव नहीं

पल गुज़ारे अगर मिल सकेंगे कभी

तो हमारा मिलन भी असम्भव नहीं


प्रिय  रहे  तुम  हमें  सारे  संसार  से

पर कभी कर न पाये तुम्हें प्यार हम

बीच में  बह रही  जो समय की नदी

इसके उस पार तुम, इसके इस पार हम


दो किनारे अगर मिल सकेंगे कभी

तो हमारा मिलन भी असम्भव नहीं

पल गुज़ारे अगर मिल सकेंगे कभी

तो हमारा मिलन भी असम्भव नहीं


क्षुब्ध धरती-गगन, क्षुब्ध पानी-पवन

क्षुब्ध  वातावरण,  क्षुब्ध  परिवेश है

प्यार तुमसे बहुत है, बहुत है - बहुत

किन्तु इस वक़्त प्रियतम तो ये देश है


चाँद-तारे अगर मिल सकेंगे कभी

तो हमारा मिलन भी असम्भव नहीं

पल गुज़ारे अगर मिल सकेंगे कभी

तो हमारा मिलन भी असम्भव नहीं


साथ में प्राण! आषाढ़ का एक दिन

फिर  बिताने को लेंगे हज़ारों जनम

नेह  से  बाँचना  नित्य  रघुवंश  तुम

अब न पढ़ना अभिज्ञान शाकुन्तलम


स्वप्न सारे  अगर मिल सकेंगे कभी

तो हमारा मिलन भी असम्भव नहीं

पल गुज़ारे अगर मिल सकेंगे कभी

तो हमारा मिलन भी असम्भव नहीं


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