Tuesday, 31 July 2018

लोकार्पण

Paanchjanya Samman

राष्ट्रीय चेतना के काव्य सृजन एवम् समाजसेवा हेतु बरेली के डॉ. राहुल अवस्थी को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल माननीय श्री राम नाईक ने श्री शिरडी साई सेवा ट्रस्ट, बरेली की ओर से 'पाञ्चजन्य सम्मान' प्रदान किया। इस अवसर पर ट्रस्ट के सर्वराकार पण्डित सुशील कुमार पाठक एवम् नगर विधायक डॉ. अरुण कुमार की उपस्थिति में डॉ. राहुल अवस्थी की गीतकृति - हमें तुम गुनगुनाओगे का विमोचन भी श्री राम नाईक ने किया।

Wednesday, 25 July 2018

कारगिल

स्वर उचारे अगर मिल सकेंगे कभी

तो हमारा मिलन भी असम्भव नहीं

पल गुज़ारे अगर मिल सकेंगे कभी

तो हमारा मिलन भी असम्भव नहीं


प्रिय  रहे  तुम  हमें  सारे  संसार  से

पर कभी कर न पाये तुम्हें प्यार हम

बीच में  बह रही  जो समय की नदी

इसके उस पार तुम, इसके इस पार हम


दो किनारे अगर मिल सकेंगे कभी

तो हमारा मिलन भी असम्भव नहीं

पल गुज़ारे अगर मिल सकेंगे कभी

तो हमारा मिलन भी असम्भव नहीं


क्षुब्ध धरती-गगन, क्षुब्ध पानी-पवन

क्षुब्ध  वातावरण,  क्षुब्ध  परिवेश है

प्यार तुमसे बहुत है, बहुत है - बहुत

किन्तु इस वक़्त प्रियतम तो ये देश है


चाँद-तारे अगर मिल सकेंगे कभी

तो हमारा मिलन भी असम्भव नहीं

पल गुज़ारे अगर मिल सकेंगे कभी

तो हमारा मिलन भी असम्भव नहीं


साथ में प्राण! आषाढ़ का एक दिन

फिर  बिताने को लेंगे हज़ारों जनम

नेह  से  बाँचना  नित्य  रघुवंश  तुम

अब न पढ़ना अभिज्ञान शाकुन्तलम


स्वप्न सारे  अगर मिल सकेंगे कभी

तो हमारा मिलन भी असम्भव नहीं

पल गुज़ारे अगर मिल सकेंगे कभी

तो हमारा मिलन भी असम्भव नहीं


#Kargil #War #Memorial #Song #Vijay #Divas #Tiranga #National #Flag #martyrs #Soldiers

Wednesday, 18 July 2018

महिला लेखन की लप्पाडुग्गई का डिसेक्शनल स्टिंग

इधर लगभग हर तथाकथित एक्ट्रेस लौंडिया जैसे अपेक्षाकृत अन्य अपने अनन्य एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी एक्सपोज़िया बयान और प्रमाण से अपनी रोज़ी-रोटी का गारण्टी-पर्सेण्ट जुगाड़ती है, वैसे ही एक अरसे से प्रायः महिला कथाकाराएँ कामकीलित-कामकलित शब्दचित्रण से सनसनीखेज़ सफलता की सम्भावनाएँ प्रकाशक-प्रकाशक, पाठक-पाठक तलाशती रही हैं। किसी-किसी किताब की दमपेल कामुक भंगिमाओं की भयावह भरमार में साधारणतः कथासूत्र तलाशना होता है कि है भी कि नहीं! तू डाल-डाल, मैं पात-पात, पर काठ की हाँडी चढ़े भी तो कहाँ तक! कामोन्मुख लेखन यद्यपि कोई डाल-तोड़ा मुद्दआ नहीं, तो भी गुह्य सम्बन्ध-व्यवहारों और निजी जीवन-व्यापारों के कपड़े उतारने वाले स्वीकारों-उद्गारों में महारत-हासिल कुछ छपक्कड़ों ने उखाड़-पछाड़ के अखाड़े में बड़ी चतुराई से अपनी छीछड़ीय छाप छोड़े बिना इतिहासनिर्मात्री प्रतिभा सिद्ध होना चाहा पर छीछड़े धरोहर नहीं बनते।

जब इश्क़-मुश्क़ जाहिर होने से नहीं बचते तो ख़ैर, ख़ून, खाँसी, ख़ुशी भी छिपने से रहे। बड़ी ठेठ और जुगुप्साकारक ग्राम्य कहावत है - पानी-हगा उतराय क रही का! माफ़ करें बड़ी-बड़ी वाली लेखिकाएँ मैडम! नियति अपनी-अपनी, पर नीयत को नज़रअन्दाज़ कब तक और कैसे किया जा सकता है! नीयत नज़र में चढ़ी भले न हो, नज़र ज़रूर आ गयी है : निरुपमजी न जाने कहाँ से अदबदाकर अचानक टपक पड़ीं। बना-बनाया खेल ग्लैमलेस हो सकता है। धत् तेरे की! यद्यपि इसका अर्थ यह भी नहीं कि किसी महिला कथाकार ने समकालीन परिदृश्य और परिवेश में सार्थक कुछ किया ही नहीं। बहुत कुछ ऐसा है जिसे बाज़ार और विचार के सहज दबाव और प्रभाव से इतराया जाकर गुमानलायक कहना अतिकथन न होगा, फिर भी सब एक-सा स्वीकारना पाँचों उँगलियाँ बराबर मानने की मसल होगी। चलो, कोई तो आगे आया ये विषय खरा-खोटा करने, पर महिला होकर भी महिला-कथाकारों को क्या इस तरह राडार पर लेना ज़रूरी था!

अनैतिकता और अश्लीलता के पहलू समय-सन्दर्भों में पर्याप्त मुबाहिसे का विषय हो सकते हैं परन्तु इसका अर्थ यह  नहीं कि अदालत के कटघरे तक पहुँचने के ख़्याल से पहले अचूके मनमाना करते जाया जाये! ये तो बेहयाई हुई या बेग़ैरती या फिर ग़ैर ज़िम्मेदाराना रवैया। चलती का नाम गाड़ी भले हो पर आदर्श तो नहीं न! समाजव्यवस्था और नीति भी आख़िर कोई चीज़ है। पूरब पूरी तरह पश्चिम हो गया क्या : भारत अभी अमेरिका तो हुआ नहीं ! जीवन के लिये कला कला के लिये से सर्वदा बेहतर है। महिला-कथाकाराएँ कई स्थानों पर बिकने के चक्कर में अपनी मस्तरामिता से जमकर बाज़ नहीं आयी हैं पर संयोगवश निरुपमजी जैसे क्लोज़सर्किट कैमरे कहीं न कहीं निकल ही आते हैं। व्यवहृत जातिवादी व्यवस्था का विरोध और व्यवहृत जातिगत व्यवस्था का विरोध दो अलग बातें हैं और नफ़ा-नुकसान अपने-अपने, पर आख़िरकार ख़तरे दोनों के एक-से ही हैं।

औरत होकर औरत के हक़ में लब खोलना, बोलना नो प्रॉब्लम, पर औरत के हक़ की समीक्षा करना - ये ज़रा कठिन काम है और इने-गिने नाम ही ऐसा करने वाले निकलेंगे पर डॉ. निरुपम शर्मा ये काम बख़ूबी कर निकली हैं। स्वच्छन्द स्त्री-स्वातन्त्र्य के नाम पर माँगहीन बड़ी बिन्दी ब्रिगेड की सर्वसाधारणतः पुरुषमात्र के प्रति गाली-गलौज का छद्मक्रम और उनके इंटेंशनल वीभत्स रेखांकन जैसे काम को नज़र में लेने जैसा ज़ुर्रती और अप्रतिम काम करने के कारण भी निरुपमजी निरुपम हो ली हैं। उनका अन्वयकर्म उन्हें अनन्वय करता है। समीक्षा के निकष पर नीर-क्षीरिता उन्हें भलीभाँति पता है और हंसकर्मा होना उन्हें अच्छी तरह आता है पर प्रभावात्मक और निर्णयवादी आलोचना से वे बची हैं। प्रकल्पन, प्रकथन, परीक्षण, प्रेक्षण और परिणमन के क्रम में प्राप्त आँकड़े उन्होंने प्रस्तुत भर कर दिये हैं : रामचन्द्र शुक्लेनियन शैली उनका उद्दिष्ट भी नहीं शायद। उद्धत उपोद्घात और उग्र उपसंहारस्वरूप दण्डात्मक उद्घोषणा शुद्ध शोधप्रज्ञ को अलम कहाँ! मद्देनज़र इसके और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यमान की उत्कट हामी होने के भी संग्रहण, भावन और विश्लेषण-उपरान्त प्रस्तुति-पथ तक शोधलेखिका ने आपा कहीं नहीं खोया है। पाठकों के हस्तगत होने हेतु प्रकाशित होने जा रहे प्रस्तुत प्रबन्धान्तर्गत परिशिष्टपर्यन्त लेखनीय मर्यादा और लेखकीय गरिमा दोनों को सहजतः साधे रखा गया है। सिंहैषणा नहीं, गवेषणा डॉ. निरुपम की चिन्तना और चेतना को अभीष्ट है। उद्भट और अलीक लेखिका की हंसस्विता के प्रति असंख्य साधुभाव।

कृति (शोधग्रन्थ) हिन्दी महिला कहानीकारों के कथा साहित्य में अश्लील एवं नैतिकता के विविध आयाम / डॉ. निरुपम शर्मा / डिमाई साइज़ सजिल्द / प्रथम संस्करण २०१७ / ISBN 978-93-81531-58-7/ लोकहित प्रकाशन, शाहदरा, दिल्ली / मूल्य ₹ ७९५/-

Tuesday, 17 July 2018

बरेली कॉलेज बरेली : स्थापना दिवस

अध्यापन-अध्ययन यजन-रत
गहन मननरत सुमन-सृजनरत
कृतियों का उद्देश्य बताती
श्रुतियों का सन्देश सुनाती
यशोध्वजा लहराती पल-पल लोल बरेली कॉलेज की
जय बोल बरेली कॉलेज की, जय बोल बरेली कॉलेज की

सम्प्रभुताओं का स्वरित्र है
समरसताओं का चरित्र है
ऋजुता का सुपवित्र इत्र है
ऋषिता का जीवन्त चित्र है
ये स्वातन्त्र्य-समर का लेखा
इसने इंक़लाब को देखा
आत्मतुला पर तपस्विताएँ तोल बरेली कॉलेज की
जय बोल बरेली कॉलेज की, जय बोल बरेली कॉलेज की

यजुस्सामऋकमय सुज्ञान है
ज्ञान अनाविल प्रवहमान है
चरण-चरण आचरणवान् है
श्वास-श्वास हिन्दोस्तान है
वैदुष्यों की व्यासपीठिका
प्रज्ञापूर्य विराट् वाटिका
धर्मधुरीण धरोहर है अनमोल बरेली कॉलेज की
जय बोल बरेली कॉलेज की, जय बोल बरेली कॉलेज की

जीवनक्रीड़ाओं का दर है
संस्कृति-सूक्त-कला का घर है
वैज्ञानिकताओं का स्वर है
शैक्षिकता अक्षर-अक्षर है
संवर्धन-संसाधन-साधन
अधुनातन विधिबन्ध प्रबन्धन
प्रस्तृत पृष्ठों की पुस्तक प्रिय खोल बरेली कॉलेज की
जय बोल बरेली कॉलेज की, जय बोल बरेली कॉलेज की

अन्धेरों पर वार करेंगे
जगती पर उजियार करेंगे
विभुता का विस्तार करेंगे
स्वप्न सुभग साकार करेंगे
काठिन्यों की चट्टानों पर
सारल्यों के हस्ताक्षर कर
प्रस्तृति में सांस्कृतिक प्रभा शुचि घोल बरेली कॉलेज की
जय बोल बरेली कॉलेज की, जय बोल बरेली कॉलेज की

#Foundation_Day #Bareilly_College_Bareilly

Friday, 6 July 2018

शक़ील बदायूँनी सम्मान

माँ तुझे प्रणाम
कवि सम्मेलन-2018
कटरा सआदतगंज (बदायूँ)

Wednesday, 4 July 2018

सन्ध्या

क्या बतलाऊँ मैं कहाँ-कहाँ तक सङ्ग तेरा ही है ईश्वर
बेरङ्ग जहाँ में यहाँ-वहाँ  हर रङ्ग  तेरा ही है ईश्वर 🌻

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