क्या करें, क्या न करें का द्वन्द्व गहरा रहा था, चिन्तना पडी हुई थी ऐसे पशोपेश में
हमको स्वतन्त्रता का सुख देना चाहा जब हम जी रहे थे परतन्त्रता के क्लेश में
जहां आम तौर पे प्रवेश भी न मिलता था, पहुंचे वहां भी वे न जाने किस वेश में
ऊधम थे ऊधम ही जिनने यहां से जा के डायर को भून डाला डायर के देश में
@ डा० राहुल अवस्थी
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