Monday, 3 November 2014

दीपावली मना न सके



 
















बात चरित्रों की करते थे पर आचरण बचा न सके
प्रिय आवरण वरण कर पाये, पर्यावरण बचा न सके
 



















वैभव की चाहत में सम्भव हर आहट ठुकरायी हमने
नवता का आग्रह रखकर भी केवल रीति निभायी हमने




 
















शान्त सवेरों के खाते में बारूदों का स्वर भर डाल
हमको क्या करना था लेकिन हमने क्या से क्या कर डाला






 


















जैसे भाव रहे वैसा तो वातावरण बना न सके
दीपों की मजबूरी देखी, दीपावली मना न सके



 
















@ डा० राहुल अवस्थी
कवि सम्मेलन : दीपावली मङ्गल मिलन
२४ अक्तूबर २०१४। इन्द्रप्रस्थ एक्स्टैंशन, नयी दिल्ली




 



















https://twitter.com/Drrahulawasthi
http://drrahulawasthiauthor.blogspot.in/
https://plus.google.com/u/0/112427694916116692546
https://www.facebook.com/pages/Dr-Rahul-Awasthi/401578353273208


No comments:

Post a Comment