Sunday, 16 November 2014

शान्ति-व्यवस्था की खातिर


































जो जैसा जिस क़ाबिल था, उसको उस घाट उतारा है
गोरी को पृथ्वी ने उसके घर में जा कर मारा है



















शिशुपालों पर चक्र चलाना कृष्णों की मजबूरी है
शान्ति-व्यवस्था की खातिर सार्थक सङ्ग्राम जरूरी है


















@  डा० राहुल अवस्थी
@ सृजन कवि सम्मेलन, उन्नाव। १५ नवम्बर २०१४
@ चित्र-सौजन्य : विश्वनाथ तिवारी विशु

















 
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Monday, 3 November 2014

दीपावली मना न सके



 
















बात चरित्रों की करते थे पर आचरण बचा न सके
प्रिय आवरण वरण कर पाये, पर्यावरण बचा न सके
 



















वैभव की चाहत में सम्भव हर आहट ठुकरायी हमने
नवता का आग्रह रखकर भी केवल रीति निभायी हमने




 
















शान्त सवेरों के खाते में बारूदों का स्वर भर डाल
हमको क्या करना था लेकिन हमने क्या से क्या कर डाला






 


















जैसे भाव रहे वैसा तो वातावरण बना न सके
दीपों की मजबूरी देखी, दीपावली मना न सके



 
















@ डा० राहुल अवस्थी
कवि सम्मेलन : दीपावली मङ्गल मिलन
२४ अक्तूबर २०१४। इन्द्रप्रस्थ एक्स्टैंशन, नयी दिल्ली




 



















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वतन से बडा नहीं


 















 पूछा गया कक्षा में कि किससे बडा है कौन, एक ने कहा कि कुछ धन से बडा नहीं
दूसरे ने कहा कुछ तन से बडा नहीं है, तीसरे ने कहा कुछ मन से बडा नहीं
चौथे ने कहा कि क्षण, पांचवें ने कहा प्रण, छट्ठे ने कहा कि जन गण से बडा नहीं
सातवें ने कहा कोई कितना बडा हो किन्तु अन्ततः अपने वतन से बडा नहीं



 


















@ डा० राहुल अवस्थी
२ नवम्बर २०१४। कटरा सआदतगञ्ज, बदायूं
 



















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Saturday, 1 November 2014

दीपावली मना न सके


 















 बात चरित्रों की करते थे पर आचरण बचा न सके
प्रिय आवरण वरण कर पाये, पर्यावरण बचा न सके
वैभव की चाहत में सम्भव हर आहट ठुकरायी हमने
नवता का आग्रह रखकर भी केवल रीति निभायी हमने
शान्त सवेरों के खाते में बारूदों का स्वर भर डाल
हमको क्या करना था लेकिन हमने क्या से क्या कर डाला
जैसे भाव रहे वैसा तो वातावरण बना न सके
दीपों की मजबूरी देखी, दीपावली मना न सके






 
















@ डा० राहुल अवस्थी
 



















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