Sunday, 10 August 2014

धर्मों में रक्षाबन्धन हो



अब असुरक्षा का कहीं भी क्रन्दन हो
धर्मों में आपस में रक्षाबन्धन हो
अलगावों का और शोर-शराबा हो
अब भारत ही हमको काशी-क़ाबा हो
फूलों के जैसा खिलकर रहना होगा
रहना है तो फिर मिलकर रहना होगा
जन-गण-मन को वतनपरस्त बनायें हम
आओ, अपना देश सशक्त बनायें हम
 
 

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