हमें धारे सँवारें जो, उसे हम बाँट देते हैं
हमें बाँटें सदा जीवन, उसे हम पाट देते हैं
हमें जो घाव देते हैं उन्हें हम भाव देते हैं
हमें जो छाँव देते हैं, उन्हें हम काट देते हैं
हमें जो फूल देते हैं, उन्हें हम ख़ार देते हैं
हमें जो हर ख़ुशी देते, उन्हें धिक्कार देते हैं
यही इंसान होते हैं, यही इंसानियत है क्या
हमें जो ज़िन्दगी देते, उन्हें हम मार देते हैं
हमें आबाद करते जो, उन्हें बरबाद करते हैं
न हम इस पर कभी कोई उचित संवाद करते हैं
कि जिनके सार्थक अस्तित्व से अस्तित्व हैं अपना
उन्हें महदूद कर हद में दिवस की, याद करते हैं
न ऐसा हो प्रगति के हम नये आयाम दे डालें
ज़रा आराम को जीवन-मरण का नाम दे डालें
प्रदूषित वायु-जल - ये सब हमें नाकाम कर देंगे
परस्पर हम स्वयं की मौत को अञ्जाम दे डालें
न ऐसा हो कहीं इक दिन सकल संसार जल जाये
समय से पूर्व सबकी ज़िन्दगी की धूप ढल जाये
हमें जब चेतना आये, सुमति जागे हमारे, तब
समझने का सँभलने का सही अवसर निकल जाये
न जब कुछ भी मिलेगा शुद्ध, हम ये मन बना लेंगे
न खाने योग्य जो होगा उसे ले स्वाद, खा लेंगे
मयस्सर कुछ न जब होगा हमें, हम लोग तब अक्सर
ज़रूरत के लिये इक दूसरे को चीर डालेंगे
ख़ुशी की चाह में ख़ुदगर्ज़ियों का जाप कर बैठें
असल में पुण्य के बदले हज़ारों पाप कर बैठें
हथेली पर लिये घूमें बदलते दौर में दुनिया
अँगुलियों की शरारत पर अँगूठाछाप कर बैठें
अहम करना न ख़ुद पर, दीन-दुखियों पर रहम खाना
बड़ी राहत रहेगी दोस्त, ग़म खाना व कम खाना
यही इंसान को क़ुदरत हमेशा सीख देती है
बुराई हो भले कितनी, भलाई की क़सम खाना
भला ये तो नहीं है जब ज़रूरत हो, तभी सोचें
भले मानुष, तनिक अपने अलावा भी कभी सोचें
इधर जो कर रहे हैं वो भला है या बुरा - इस पर
अगर कुछ सोचना है तो अभी सोचें, अभी सोचें
स्वयं पर्यावरण अपना सुरभि-संयुक्त कर देंगे
सुधारों के प्रयासों को समर्पणयुक्त कर देंगे
हमें मिलकर शपथ यह एक स्वर से आज लेनी है
कि दुनिया को यथासम्भव प्रदूषणमुक्त कर देंगे
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