विरल आदर्श का अविरल तरल व्यवहार है गङ्गा
समुज्ज्वल चेतनाओं की अनाविल धार है गङ्गा
गरलत को सरलता से पचाकर के अमृत देती
हमारे पूर्व पुरुषों का प्रवाहित प्यार है गङ्गा
न गर त्यागी प्रदूषण की डगर, गङ्गा नहीं होगी
यहाँ गङ्गा तलाशेंगे मगर गङ्गा नहीं होगी
हमारी सभ्यता का सार है आधार है गङ्गा
कहाँ फिर संस्कृति होगी अगर गङ्गा नहीं होगी
समय की पीठ पर असमय धरा की धूप धर देंगे
स्वभावों में अभावों का भयङ्कर भाव भर देंगे
नहीं गङ्गा रहेगी तो महाभारत सुनिश्चित है
न होगा देवव्रत कोई, शिखण्डी भीड़ कर देंगे
न ऐसा हो सुरक्षा की सुदृढ प्राचीर गल जाये
रुकें निर्माण प्राणों में प्रणों में पीर पल जाये
प्रतापी भीष्म गङ्गा ही यहाँ उत्पन्न कर सकती
शिखण्डी जन्मने की फिर न कोई रीति चल जाये
शपथ लेनी पड़ेगी ये कि हर विषता पचानी है
हमें हक़ की हथेली फ़र्ज़ की मेहँदी रचानी है
हमें जीवन बचाना है हमें संस्कृति बचानी है
हमें भारत बचाना है हमें गङ्गा बचानी है
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